Monday, July 26, 2010

सेस गनेस दिनेस महेस सुरेसहु जाके निरंतर ध्यावेँ,
आदि अनादि अनंत अखंड अभेद अछेद सुवेद बतावेँ,
नारद से सुनि व्यास थके, पचि हारि गए तहोँ भेद पावेँ,
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भर छाछ पे नाच नचावेँ.

लाय समाधि रहे ब्रम्हादिक जोगी भये पर अंत पावेँ,
साँझ ते भोरहिँ भोर ते सांझहि सेस सदा नित नाम जपावैँ,
ढूँढे फिरै तिरलोक में साख सुनारद ले कर बिन बजावैँ,
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भर छाछ पे नाच नचावेँ.


गूँज गरे सिर मोरपखा अरु चाल गयंद की मो मन भावै,
साँवरो नंदकुमार सबै ब्रज मंडली में ब्रजराज कहावै,
साज़ समाज सबै सिरताज लाज की बात नहीं कही आवै,
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भर छाछ पे नाच नचावेँ.
गावैं गुनी गनिका गन्धर्व सारद सेस सबै गुण गावैं।

नाम अनन्त गनन्त गनेस जो ब्रह्मा त्रिलोचन पार न पावैं।।

जोगी जती तपसी अरु सिद्ध निरन्तर जाहिं समाधि लगावैं।

ताहिं अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पे नाच नचावैं।।

संकर से सुर जाहिं जपैं चतुरानन ध्यानन धर्म बढ़ावैं।

नेक हिये में जो आवत ही जड़ मूढ़ महा रसखान कहावै।।

जा पर देव अदेव भुअंगन वारत प्रानन प्रानन पावैं।

ताहिं अहीर की छोहरियाँ छछिया भरि छाछ पे नाच नचावैं।।

पंछियों की ज़ुबान में बोले
हम हमेशा उड़ान में बोले

जो तराशे गए वो बतियाए
कितने हीरे खदान में बोले

भूल कर नदियों की कुर्बानी
लोग सागर की शान में बोले

दंभ दौलत का छिप नहीं पाता
जब वो मंदिर के दान में बोले

बात सुन ले दूसरा कोई
इसलिए लोग कान में बोले

भूल कर भूतकाल के किस्से
हम सदा वर्तमान में बोले

लोग दंगों के दौर की पीड़ा
खुल के अमन--अमान में बोले।
सबकी आँखों में नीर छोड़ गए।
जाने वाले शरीर छोड़ गए।

राह भी याद रख नहीं पाई
क्या... कहाँ राहगीर छोड़ गए?

लग रहे हैं सही निशाने पर,
वो जो व्यंगों के तीर छोड़ गए।

एक रुपया दिया था दाता ने,
सौ दुआएँ फकीर छोड़ गए।

उस पे कब्ज़ा है काले नागों का,
दान जो दान-वीर छोड़ गए।

हम विरासत रख सके कायम,
जो विरासत 'कबीर' छोड़ गए।
क्या पता था कि किस्सा बदल जाएगा,
घर के लोगों से रिश्ता बदल जाएगा।

हाथ से मुँह के अंदर पहुँचने के बाद,
एक पल में बताशा बदल जाएगा।

दो दशक बाद अपने ही घर लौट कर,
कुछ कुछ घर का नक्शा बदल जाएगा।

वो बदलता है अपना नज़रिया अगर,
सोचने का तरीका बदल जाएगा।

चश्मदीदों की निर्भय गवाही के बाद।
खुद--खुद ये मुकदमा बदल जाएगा।

लौट आया जो पिंजरे में थक-हार कर,
अब वो बागी परिंदा बदल जाएगा।

घर के अंदर दिया बालते साथ ही,
घुप अंधेरे का चेहरा बदल जाएगा।
लीक तोड़ी तो चल नहीं पाए,
लोग, रस्ते बदल नहीं पाए।

उसने रातों में जुगनुओं की तरह,
भय से उन्मुक्त पल नहीं पाए।

सोच में थी कहीं कमी कोई,
दुःख से बाहर निकल नहीं पाए।

तुम समझते रहे जिन्हें उर्वर,
फूल के बाद, फल नहीं पाए।

हमने सत्ता के साथ मिल कर भी,
हर समस्या के हल नहीं पाए।

एक बच्चे को शक्ल मिल जाती,
भ्रूण साँचे में ढल नहीं पाए।

सूर्य की कोशिशें हुईं नाकाम,
हिम के पर्वत पिघल नहीं पाए।